भगवान विष्णु का - वराह –अवतार
श्रीविष्णु के चार महत्वपूर्ण अवतार –
वराह, नृसिंह, श्रीराम, और श्रीकृष्ण
श्रीविष्णु का दर्शन करने के लिए उनके
अंशावतार सनकादि मुनि एक बार वैकुंठ धाम पहुचे तो वहाँ जय- विजय नामक दो
द्वारपालों ने उन्हें रोक लिया और और मुनियों का उपहास उड़ाते हुए बोले, हे वनवासी
बच्चो तुम भगवान विष्णु के दर्शन के लिए आए हो किन्तु तुम्हें पता नही है की भगवान
विष्णु से इस समय कोई नहीं मिल सकता द्वारपालों की यह बात सुनकर सनकादि मुनियों ने
द्वारपालों से प्रार्थना की और कहा हम बहुत दूर से आए है अत; हमें भगवान विष्णु के
दर्शन करने दीजिए मुनियों की यह बात सुनकर द्वारपाल हँसते हुए बोले, बालको तुम्हें
कहीं जाकर खेलना चाहिए इस प्रकार हमें परेशान मत करो’’ द्वारपालो के इस उपहास से
सनकादि मुनियों ने क्रोधित होकर उन्हें तीन बार दैत्य-योनी में जन्म लेने का शाप
दे दिया जय- विजय श्रीविष्णु की स्तुति आरंभ कर दी द्वारपालो की करुण विनती सुन
श्रीविष्णु जी बोले, मुनिगण का शाप तो अवश्य पूर्ण होगा किन्तु पत्येक जन्म में
दैत्य- योनी से तुम्हें मुक्ति प्रदान करने के लिए मै स्वयं मृत्यु- लोक में अवतार
लूँगा जय-विजय महर्षि कश्यप की धर्मपत्नी दिति के गर्भ से जुड़वाँ भाइयों के रूप
में पैदा हुए उनका नाम हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु रखा गया सनकादि मुनियों के शाप
के कारण दोनों भाई आरंभ से ही बेहद क्रूर
और उत्पाती थे दैत्य हिरण्याक्ष ने अपनी गदा लेकर अकेले ही स्वर्ग पर चढाई कर दी
और देवताओ से भयंकर युद्ध हुआ और युद्ध में हिरण्याक्ष की विजय हुई हिरण्याक्ष ने
भू – देवी पृथ्वी पर भी अत्याचार किये पृथ्वी पर अपना अधिकार करने के लिए उसने
पृथ्वी पर सभी आश्रमों को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया ऋषि-मुनियों को मार-मारकर चारों तरफ
दैत्य शक्ति को बढ़ाना सुरु कर दिया उसने सम्पूर्ण पृथ्वी पर प्रभुत्व स्थापित कर
लिया हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को ले जा करके समुद्र के गर्भ में कीचड़ के भीतर छिपा
दिया स्वर्ग-लोक और पृथ्वी को अपने अधिकार में लेकर हिरण्याक्ष ने पाताल-लोक पर
आक्रमण कर दिया उधर ब्रम्हाजी सृष्टि-रचना कार्य में लगे हुए थे उन्होंने जैसे ही
श्रीविष्णु का स्मरण किया,भगवान विष्णु वहा प्रगट हुए और दो भागों में बँट गए एक
भाग नर और दूसरा भाग नारी के रूप में नर का नाम मनु’ हुआ और नारी का नाम सतरूपा
ब्रम्हाजी ने मनु-सतरूपा से कहा पृथ्वी पर जाओ और पति – पत्नी के रूप में रहकर
संतान उत्पन्न करने का आदेश दिया और कहा तुम्हारी संतान मनुष्य कहलाएगी ब्रम्हाजी
की बात सुनकर मनु बोले, हे परमपिता ब्रम्हा|आपने हमें उत्पन्न तो कर दिया, लेकिन
हम रहें कहाँ पृथ्वी तो अथाह जल में डूबी हुई है ब्रम्हाजी श्रीविष्णु का स्मरण
करते हुए बोले, हे भगवान विष्णु पृथ्वी को आज आपकी आवश्कता आ पड़ी है हिरण्याक्ष से
पृथ्वी को सिर्फ आप ही बचा सकते है आपने ही हिरण्याक्ष को पूर्व जन्म में अपने
हाथों मारने का वरदान दिया था प्रभु, हिरण्याक्ष को मारकर पृथ्वी को उसके दमन से
बचाएँ ब्रम्हाजी की स्तुति को सुनकर भगवान विष्णु ने वराह का रूप धारण किया और
ब्रम्हाजी के नासा छिद्र से एक अत्यंत सूक्ष्म वराह के रूप में तीब्र गति से निकले
और देखते ही दखते पर्वताकार होते चले गये | पृथ्वी को बचाने के लिए वराह रूपी
श्रीहरी जल को चीरते हुए पाताल-लोक जा पहुचें वहाँ पृथ्वी को खोजकर उन्होंने पृथ्वी
को अपने थूथन एवं भयंकर दाँतों पर रख लिया और तीब्र हुंकार भरते हुए उपर उठते चले
गये उधर भगवान विष्णु की खोज में हिरण्याक्ष क्रोध से पागल होकर उत्पात मचा रहा था
तभी नारद मुनि वहाँ पहुँच गये और बोले,तुम जिसकी खोज में क्रोध से पागल हो रहें हो
वह श्रीविष्णु तो वराह रूप में रसातल से पृथ्वी को उठाकर उपर आ रहें है जाओ, उनका
पीछा करो हिरण्याक्ष तुरंत वहाँ आ पहुँचा और वराह रूपी श्रीहरी को ललकारते हुए
बोला, हे मायावी विष्णु तुम्हारी मृत्यु आज मेरे ही हाथों से होगी आज तुम्हें कोई
नही बचा पाएगा राक्षसों का सबसे बड़ा दुश्मन आज धराशायी होगा श्रीविष्णु ने पृथ्वी
को अपनी सही जगह स्थापित करने के बाद भगवान विष्णु हिरण्याक्ष से बोले कौन किसका
अंत करता है इस प्रश्न का उतर तुम्हें शीघ्र ही मिल जायेगा सर्वप्रथम मेरे क्रोध
से अपने को बचाओ वराह रूपी श्रीविष्णु ने हिरण्याक्ष का अंत किया हिरण्याक्ष की
मृत्यु का बाद सभी ओर विजय के शंख बज उठे वराह रूपी भगवान विष्णु की देवतओं ने
हर्षध्वनि करते हुए पुष्प-वर्षा की|
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