भगवान विष्णु का वामन अवतार

 

भगवान विष्णु का वामन अवतार

भगवान विष्णु का वामन अवतार हिरण्यकशिपु के मृत्यु के बाद हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रहलाद राजा बने उसके बाद प्रहलाद ने अपने पुत्र विरोचन को राजा बनाया और खुद सन्यास ले लिया और विष्णु भगवान के भक्ति में लीन हो गये(www.neelam.info) एक कथा के अनुसार इंद्र ने छल से विरोचन को मार कर जला दिया जब ये खबर प्रहलाद के पोत्र बलि को मिला की उसके पिता विरोचन को इंद्र ने छल से हत्या कर दी है बलि को बहुत दुःख हुआ, और वह क्रोध से पागल वली इंद्र के पास गया और इंद्र ने ब्रज से बलि पर प्रहार कर दिया और बलि की मृत्यु हो गयी| शुक्राचार्य ने संजीवनी पिलाकर बलि को जीवित किया और उसके बाद राजा बलि आक्रमण करना शुरु किया, भक्त प्रहलाद का पौत्र दैत्यराज बलि बहुत शक्तिशाली था उसने सम्पूर्ण संसार के साथ-साथ देवलोक पर भी अधिकार कर लिया| बलि बहुत बड़ा दानी भी था देवराज इंद्र अनेक देवताओं के साथ ब्रम्हाजी के पास गये और ब्रम्हाजी जी से सहायता की प्रार्थना की,ब्रम्हाजी जी ने उन्हें श्रीविष्णु के शरण में जाने को कहा इंद्र के साथ सभी देवता विष्णु के पास गये भगवान विष्णु देवताओं से बोले बलि के आतंक से मुक्ति प्रदान करने के लिए मैं शीघ्र ही माता अदिति के गर्भ से जन्म लूँगा| महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से जन्म लेने वाला वह बालक बौना था दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य ने बलि से कहा तुम अश्वमेध यज्ञ करो जिससे तीनों लोक में सदा के लिए तुम्हारा अधिकार हो जाये अश्वमेध यज्ञ आरंभ हो गया दैत्यराज बलि अश्वमेध यज्ञ कर रहा था अन्य ऋषि-मुनियों के साथ भगवान वामन भी यज्ञ स्थल पर पहुच गए भगवान वामन के तेज को देखकर बलि चमत्कृत हो उठा| बलि ने सभी की पूजा अर्चना की और सभी ऋषि-मुनियों को उनकी इच्छानुसार दान दिया, किन्तु भगवान वामन ने कुछ भी नही माँगा बलि ने कहा ‘हे ब्राम्हणकुमार आप को क्या चाहिए बलि की बात सुनकर भगवान वामन ने कहा हमें तीन पग भूमि दान में दे दो ब्राम्हण देवता द्वारा तीन पग भूमि मागने पर बलि अहंकार में भरकर हँस पड़ा और भगवान वामन से बोला ‘हे तपस्वी आपने दैत्यराज बलि के अश्वमेध यज्ञ में माँगी भी तो सिर्फ तीन पग भूमि अगर आप चाहें तो मै आपको तीन लोकों का राज दान में दे सकता हूँ, तीनों लोको का स्वामी बना सकता हूँ बलि की इन अहंकारपूर्ण बातों को सुनकर भगवान वामन ने शांत स्वर में कहा, ‘महाराज बलि मुझे आपसे अन्य किसी भी वस्तु की लालसा नही है बलि ने अंजुली में जल भरा और दान देने का संकल्प करने लगे उसी समय वहाँ शुक्राचार्य उपस्थित हुए और वली को रोकते हुए बोले ‘सावधान राजन यह वामन रूपी ब्राम्हण साक्षात विष्णु है और देवताओं की सहायता के लिए ही इन्होनें वामन का रूप धारण किया है लेकिन महादानी बलि ने शुक्राचार्य की बात पर कोई ध्यान नही दिया बलि द्वारा दान का संकल्प करते ही वामन बने भगवान विष्णु ने अपना आकार आकाश से भी विशाल कर लिया उनका वह विशाल रूप देखकर दैत्य भयभीत हो उठे आकार विशाल होते ही भगवान वामन ने एक पग में संपूर्ण पृथ्वी, दुसरे पग में स्वर्ग तथा इंद्रलोक को नाप लिया इसके बाद उन्होंने दैत्यराज बलि से पूछा ‘हे दानवीर बलि तुम्हारा यह सम्पूर्ण राज्य तो मेरे दो कदमों में ही समा गया है अब कोई भी ऐसा स्थान नही है, जहाँ मैं अपना तीसरा पग रखूँ अब तुम ही बताओं, तीसरा पग मैं कहा रखूँ’ भगवान वामन की बात सुनकर दैत्यराज बलि का गर्व खंडित हो गया और वह बोला हे प्रभु आप सर्वशक्तिमान है आप ही समस्त जीवों के पालनकर्ता है जो स्वयं ही सबसे बड़ा दानी है जिनके दया सागर के कारण यह संसार चल रहा है मैं आपकी वस्तुएँ आपको ही दान करने की भूल कर बैठा मुझे क्षमा करे प्रभु और दान का वचन पूरा करने के लिए आप अपना तीसरा पग रखने के लिए मेरा सिर स्वीकार करे, फिर भगवान विष्णु ने बलि के सिर पर अपना पैर रखा और उसे क्षमा कर दिया श्रीविष्णु के चरण सिर पर रखने से दैत्यराज बलि का मन शुद्ध और सात्विक हो गया वह भगवान श्रीहरी का परम भक्त बन गया| भगवान विष्णु ने कहा मेरी सच्चायी जानने के बाद भी तुम अपने बचन से नही हटे श्रीविष्णु ने बलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर उसे पाताल – लोक का राज्य प्रदान किया | 

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