भगवान विष्णु का श्रीराम अवतार

 

भगवान विष्णु का श्रीराम अवतार

पुलस्त्य ऋषि के यहाँ रावण और कुंभकर्ण ने जन्म लिया सनकादि मुनि के शाप से जय विजय अपने दुसरे जन्म में रावण और कुंभकर्ण के रूप में पैदा हुए रावण वेद – शास्त्रों का प्रकांड विद्वान था,ब्रम्हाजी से प्राप्त अमरत्व के बरदान ने रावण को महाअभिमानी बना दिया था| रावण,कुंभकर्ण ने भूमंडल पर अत्याचार करना आरंभ कर दिया था, यज्ञ-हवन, धार्मिक अनुष्ठानों पर रोक लगा दी पृथ्वी पर हाहाकार मच गया तब देवता,ऋषि-मुनि आदि भगवान विष्णु की शरण में गये भगवान विष्णु ने कहा, पृथ्वी को भय-मुक्त करने के लिए मै राजा दशरथ के यहाँ जन्म ले रहा हूँ राजा दशरथ की तीन रानी थी कौशल्या से श्रीराम का जन्म हुआ,कैकेयी से भरत का और सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुध्न का जन्म हुआ श्रीराम के रूप में यह भगवान विष्णु का पूर्णावतार था उनके साथ शेषनाग ने लक्ष्मण के रूप में, पाञ्चजन्य ने भरत के रूप में और शत्रुध्न के रूप में सुदर्शन ने जन्म लिया महर्षि विश्वामित्र के यज्ञ – कार्य में दैत्य और राक्षस बहुत विध्न डाल रहे थे उन्होंने राजा दशरथ से आग्रह किया की आश्रमवासियों की सुरक्षा के लिए राम लक्ष्मण को भेज दे राम- लक्ष्मण यज्ञ स्थल पर पहरा देने लगे वहाँ उन्होंने ताड़का और सुबाहु सहित अनेक राक्षसों का वध किया जब राम-लक्ष्मण विश्वामित्र के साथ लौट रहे थे तब उन्हें मिथिला-नरेश राजा जनक की पुत्री सीता स्वयंबर का निमंत्रण मिला इस स्वयंवर में यह शर्त रखी गई थी शिवजी के ‘पिनाक’ धनुष की प्रत्यंचा चढ़ानेवाले पराक्रमी व्यक्ति के साथ ही सीताजी का विवाह संपन्न होगा स्वयंवर में संसार भर के शूरवीर आए थे लंका-नरेश रावण भी आया था लेकिन रावण सहित कोई भी योद्धा प्रत्यंचा चढ़ाना तो दूर धनुष को हिला भी न सका महाराजा जनक निराश हो गये अब मेरी पुत्री का विवाह कैसे होगा तब गुरु विश्वामित्र ने श्रीराम को संकेत किया विश्वामित्र का आज्ञा पाकर श्रीराम ने शिवजी के पिनाक धनुष को नमस्कार किया और धनुष को तिनके के समान उठा लिया और ज्यों ही प्रत्यंचा चढ़ाने लगें,धनुष टूट गया, शिव धनुष के टूटते ही कैलास पर तपस्या करते परशुरामजी की तपस्या भंग हो गयी परशुरामजी क्रोधित मुद्रा में राजा जनक के दरबार में आ पहुँचे और सभी राजाओं को ललकारते हुए कहा, शिव के इस पवित्र धनुष को तोड़ने का दुस्साहस किसने किया है परशुरामजी के क्रोध को देख सभी राजाओं के प्राण सूख गये तब श्रीराम ने आगे बढकर परशुराम जी को प्रणाम किया और स्वयं धनुष तोड़ने की बात बताई परशुरामजी बोले ‘हे बालक तुमने मेरे भगवान शिव का धनुष तोडा है इसका दंड तुम्हें अवश्य मिलेगा तभी लक्ष्मण जी उनके सामने आए और बोले हे महर्षि अगर आप परशुधारी राम है तो ये धनुर्धारी श्रीराम है जो सम्पूर्ण सृष्टि को प्रकाशमान कर रहा है श्रीराम साक्षात श्रीहरी के अंशावतार है जिनकी स्वयं शिव स्तुति करते है तब परशुरामजी श्रीराम जी से बोले ‘हे राम अगर तुम वास्तव में ही विष्णु के अंशावतारी हो तो मेरे इस धनुष से तीर चलाकर दिखाओ क्योकि मेरा ये धनुष मेरी और मेरे इष्ट-देव के अतिरिक्त किसी और की आज्ञा नही मानता परशुराम की बात सुनकर श्रीराम ने उनके धनुष से तीर चलाकर आकाश की तरफ छोड़ दिया परशुराम उन्हें प्रणाम कर वापस लौट गये सीताजी,जो स्वयं महालक्ष्मी का अवतार थी ने श्रीराम के गले में माला डाल दी अयोध्या लौटने पर श्रीराम के राज्याभिषेक की तैयारी होने लगी उसी समय महारानी कैकेयी राजा दशरथ से बोली महाराज ‘एक युद्ध में आपकी जान बचाने के बदले आपने मुझे दो वर देने का बचन दिया था वे वर मुझे अभी चाहिए कैकेयी ने एक वर में अपने पुत्र भरत के लिए राजगद्दी और दुसरे वर में श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास देने की माँग की| पिता की आज्ञा मानकर श्रीराम लक्ष्मण व् सीता वन  को चले गये पुत्र वियोग में राजा दशरथ ने प्राण त्याग दिए भरत उस समय ननिहाल गये हुए थे भरत जब ननिहाल से लौटे तो उन्होंने राजपाट लेना अस्वीकार कर दिया भरत राम को लेने वन गये लेकिन श्रीराम अयोध्या नही लौटे भरत ने श्रीराम के प्रतीक के रूप में उनके खड़ाऊँ www.neelam.info राजसिंहासन पर रख दिया |भरत ने प्रण कर लिया था की वे भी भ्राता श्रीराम की तरह साधू के रूप में चौदह वर्ष बितायेगें, वनवास के अंतिम वर्ष में श्रीराम गोदावरी नदी के किनारे पंचवटी नामक स्थान पर रह रहे थे, एक दिन लंका-नरेश रावण की बहन सूर्पणखा घूमती हुई उस ओर आ निकली| श्रीराम को देखकर वह उनपर मोहित हो गयी और उनसे विवाह करने की सोचने लगी, उसने एक रूपवती स्त्री का रूप धारण किया और फिर श्रीरामचन्द्र के पास गयी और विवाह करने के लिए कहने लगी श्रीराम ने कहा हे सुन्दरी मै तो पहले से विवाहित हूँ और मै एक पत्नी-व्रत की प्रतिज्ञा कर चूका हूँ श्रीराम ने जब मना कर दिया तो शूर्पणखा लक्ष्मण के पास गयी और विवाह करने के लिए कहने लगी लक्ष्मण ने कहा मै तो यहाँ अपने प्रभु की सेवा के लिए आया हूँ इस लिए मै आपसे विवाह नही कर सकता|सूर्पणखा क्रोधित होकर बोली तुम दोनों ने मेरा अपमान किया है मै अभी इस स्त्री को मार देती हूँ सूर्पणखा सीताजी की ओर झपटी, लक्ष्मण को क्रोध आ गया और उन्होंने उसके नाक काट दिए सूर्पणखा रोती हुई अपने भाई रावण के पास गयी रावण क्रोध में आकर बोला राम ने मेरी बहन से विवाह नही किया मै उसकी सीता का हरण करके उसे दंड दूंगा,रावण ने अपने मामा मारीच से कहा सोने का हिरन रूप धारण करो और पंचवटी जाओं,मामा मारीच स्वर्ण मृग रूप धारण करके सीता जी के सामने छलाँगे भरने लगा सीता जी स्वर्ण मृग को देखके श्रीराम से बोली स्वामी मुझे इस हिरण का मृगछाल चाहिए श्रीराम मृग को मारने के लिए मृग के पीछे गये हिरण बहुत दूर भाग गया कुटिया में लक्ष्मण और सीता श्रीराम के लौटने का प्रतीक्षा कर रहे थे तभी वहाँ एक आवाज आई, हे लक्ष्मण हे लक्ष्मण सीता जी व्याकुल हो गयी और उन्होंने लक्ष्मण से कहा श्रीराम संकट में है आप तुरंत श्रीराम की सहायता के लिए जाओ लक्ष्मण के जाते ही रावण ने भिक्षुक के वेश में सीता का हरण कर लिया जब राम लक्ष्मण कुटिया पर लौटे तो वहा सीता नही थी,श्रीराम व्याकुल हो उठे और सीता जी को वन-वन ढूढने लगे मार्ग में मरणासन्न जटायु पड़ा मिला जटायु ने बताया सीता का हरण रावण ने किया है मैंने रावण को रोकना चाहा तो उसने मुझे घायल कर दिया श्रीराम ने जटायु को मोक्ष प्रदान किया मार्ग में राम-लक्ष्मण की भेट शबरी से हुई शबरी ने श्रीराम को मीठे-मीठे बेर चख-चख कर खिलाये भक्त की इच्छा रखने के लिए श्रीराम ने आदर से उन बेरों को ग्रहण किया शबरी ने श्रीराम को सुग्रीव एवं हनुमान के बारे में बताया और उनसे मित्रता करने की सलाह दी श्रीराम के दर्शन के बाद शबरी ने अपना  प्राण त्याग दिया श्रीराम की मुलाकात हनुमान से हुई हनुमान जी श्रीराम को सुग्रीव और जामवंत से मिलवाया और मित्रता करवाई। हनुमान जी सीता का पता लगाकर श्रीराम को बताया श्रीराम ने समुद्र के देवता से तीन दिन तक मार्ग देने के लिए प्रार्थना की लेकिन समुद्रदेव ने मार्ग नही दिया क्रोध में आकर श्रीराम ने ज्यों ही समुद्र सुखाने के लिए अग्नि बाण निकाला समुद्रदेव घबरा कर विष्णु रूपी श्रीराम की वास्विकता जानकर क्षमा मागने लगे। और श्रीराम जी से बोले आपकी सेना में नल-नील नाम के दो वानर है बचपन में वे दोनों बहुत शरारती थे वे ऋषि-मुनियों की बस्तुएं नदी में फेक देते थे ऋषियों ने उनसे तंग होकर शाप दे दिया था की वे जो भी वस्तु पानी में फेकेगें वह डूबेगी नही, श्रीराम ने नल-नील और वानर सेना की सहायता से शीघ्र  ही समुद्र पर सेतु बाधँ लिया रावण के एक लाख पुत्र और सवा लाख पौत्र इस महायुद्ध में काल के भेट चढ़ गये श्रीराम और रावण में भयंकर युद्ध हुआ श्रीराम के प्रतेक बाण को रावण हसतें हुए झेल रहा था तभी विभीषण श्रीराम के पास आए और बोले हे भगवन रावण के नाभि में अमृत में है आप रावण के नाभि में तीर मारिये तभी रावण की मृत्यु होगीं। नाभि में बाण लगते ही रावण की शक्ति क्षीण हो गयी और रावण की मृत्यु हो गयी। इसके बाद श्रीराम ने लंका का राज्य विभीषण को सौप दिया रावण बध के उपरांत श्रीराम जी ने सीता जी से कहा हे, सीते संसार को बताओ की तुम मन,कर्म वचन से मेरी एकनिष्ठ पत्नी हो सीता जी अपनी परीक्षा देने के लिए अग्नि में प्रवेश किया लपटों ने उन्हें छुआ तक नही स्वमं अग्निदेव ने प्रगट होकर कहा ‘हे प्रभु मै केवल अपवित्र चीजों को ही जला सकता हूँ सीताजी तो पृथ्वी है स्वयं भूदेवी है। श्रीरामजी, सीताजी,लक्ष्मण हनुमान अयोध्या लौटे। श्रीराम अयोध्या के राजा बने एक रात्रि श्रीराम अपनी प्रजा का दुःख दर्द जानने के लिए साधारण मनुष्य का वेश धारण करके नगर में घूम रहे थे और उन्होंने ने देखा एक पति अपनी पत्नी को मार रहा है और उसकी पत्नी कह रही है आंधी तूफान आ गया था इस लिए मुझे रात रुकना पड़ा उसका पति बोला मै श्रीरामचन्द्र नही हूँ रावण सीता का हरण किया था तब भी श्रीराम ने सीता जी को रख लिया यह बात सुन कर श्रीराम जी वहाँ से वापस आ गये मर्यादा पुरुषोतम श्रीराम ने अगले दिन सीताजी को जंगल में छुड़वा दिया सीताजी महर्षि बाल्मीकि के आश्रम में दो पुत्रो लव और कुश को जन्म दिया श्रीराम सीताजी के प्रतिमा को सिंहासन के निकट स्थापित कर राज्य चला रहे थे श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ किया यज्ञ में पत्नी के स्थान पर श्रीराम ने सीता जी की स्वर्ण प्रतिमा को रख कर यज्ञ आरंभ किया यज्ञ में अश्व छोड़ा गया अश्व जहाँ-जहाँ से गुजरा वहाँ के राजाओ ने आदरपूर्वक अयोध्या की अधीनता स्वीकार कर ली लेकिन वाल्मीकि के आश्रम के निकट लव-कुश ने राजकीय अश्व को बंदी बना लिया और बोले ‘हम उस राजा की अधीनता स्वीकार नही करते,जिसने अपनी पत्नी को त्याग रखा है।अश्व को लेने स्वयं श्रीराम आए। श्रीराम को देख के सीताजी ने लव-कुश से कहा ये तुम्हारे पिताश्री है सीताजी लव-कुश के साथ अयोध्या आई सीताजी ने धरती मां से कहा यदि मै पवित्र हूँ तो मै आप में समां जाऊ धरती फट गयी धरती मां स्वयं प्रगट हुई उन्होंने सीताजी को गोद में बिठाया और धरती में समा गयी श्रीराम ने लव-कुश को अपना उतराधिकारी नियुक्त किया श्रीराम ने नश्वर शरीर को त्यागने के लिए सरयू में प्रविष्ट होकर जल समाधि ले ली।जल समाधि लेने के बाद सरयू नदी में से भगवान विष्णु अपने विराट रूप में प्रगट हुए देवताओं ने भगवान विष्णु पर पुष्प-वर्षा की। श्रीहरी अपनी शेष शय्या पर विराजमान होकर वैकुंट धाम को लौट गये श्रीराम का राम-राज्य आज भी आदर्श राज्य के रूप में याद किया जाता है|

         

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