भगवान विष्णु का अजर अमर अवतार परशुराम neelam.info

 

          


भगवान विष्णु का अजर अमर अवतार परशुराम 

परशुराम भगवान विष्णु के अजर अमर अवतार है परशुराम श्रीविष्णु के क्रोधावतार है उन्होंने महर्षि जमदग्नि की धर्म-पत्नी रेणुका के गर्भ से जन्म लिया बचपन में ही बालक परशुराम भगवान शिव की तपस्या करने कैलास पर्वत पर जा पहुचे | उनकी कठोर तपस्या से शंकर जी प्रसन्न होकर प्रगट हुए और उनसे वरदान माँगने को कहा परशुराम जी ने शंकर जी से एक दिव्य अमोघ अस्त्र माँगा शिवजी ने उन्हें ‘परशु’ प्रदान किया, जो श्रीविष्णु के सुदर्शन चक्र और इंद्र के वज्रास्त्र की भ्रांति महातेज से युक्त था | इस परशु के प्राप्ति के बाद ही उनके मूल नाम ‘राम’ के साथ ‘परशु’ जुड़ा और वे ‘परशुराम’ कहलाए | एक बार हैहयवंशी महाराजा कृतवीर के पुत्र सहस्रार्जुन अपनी सेना सहित महर्षि जमदग्नि के आश्रम में आए महर्षि जमदग्नि ने उनका भरपूर स्वागत किया भोजन में अनेक प्रकार के व्यंजन परोसे गए |राजा ने ऋषि से कहा आप तो आश्रम में रहते हो इतने प्रकार के भोजन  की व्यवस्था आपने कैसे किया जमदग्नि ऋषि ने कहा मनोकामनाएँ और सभी वस्तुएँ प्रदान करने वाली कामधेनु नामक गाय के कारण संभव हो सका | कामधेनु को देखकर सहस्रार्जुन महर्षि जमदग्नि से बोले, “महर्षि यह गाय तो हम जैसे राजा के पास होनी चाहिए आप ऋषि-मुनि इसका क्या करेगें ? यह कामधेनु गाय आप हमें दे दीजिए” जमदग्नि ऋषि बोले “नहीं राजन यह कामधेनु हम सभी आश्रमवासियों की माता है इससे प्राप्त वस्तुओं द्वारा ही इस आश्रम के सभी ऋषि-मुनियों का भरण-पोषण होता है | www.neelam.info अत: हम मातारुपी इस कामधेनु को किसी भी प्रकार से आपको नही दे सकते |” इनकार सुनकर सहस्रार्जुन ने क्रोध में भरकर अपने सैनिको को आदेश दिया, कामधेनु को लेकर चलो महर्षि ने राजा को रोकने का प्रयास किया,किन्तु वे राजा और उनके सैनिकों का विरोध नहीं कर सके | परशुराम वन-भ्रमण से आश्रम लौटे तो उन्हें सारी बात ज्ञात हुई सहस्रार्जुन और उनके सैनिको द्वारा किये गये भारी उत्पात से वे क्रोध से भड़क उठे अपना परशु-और धनुष लहराते हुए वे सहस्रार्जुन की राजधानी की ओर चल पड़ें परशुराम ने सहस्रार्जुन के विशाल सेना को नष्ट कर दिया परशुराम ने अपने परशु से सहस्रार्जुन का अंत कर दिया और कामधेनु को ले करके परशुराम वापस अपने आश्रम आ गये | सहस्रार्जुन की मृत्यु से उसके दस हजार पुत्र प्रतिशोध की आग में सुलग रहे थे | एक दिन अवसर देखकर उन्होंने महर्षि जमदग्नि के आश्रम पर आक्रमण कर दिया और ऋषि जमदग्नि सहित सभी आश्रमवासियों को मार दिया ऋषि -पत्नी रेणुका को उन्होंने रोने-बिलखने के लिए जीवित छोड़ दिया | सायंकाल जब परशुराम आश्रम लौटे तो पुरे आश्रम को नष्ट  देखकर वह क्रोधित हो उठे परशुराम की माता ने करुण रुदन करते हुए इक्कीस बार अपनी छाती पीटी परशुराम भीषण आवेग से बोले, “ माताश्री, मै पृथ्वी से इक्कीस बार क्षत्रियों का नाश करूँगा परशुराम के भय से सहस्रार्जुन के पुत्र पूरी पृथ्वी पर यहाँ वहाँ छिपे फिर रहें थे फिर भी वे परशुराम से बच नही पाए परशुराम ने इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन किया, फिर अपने पूर्वजो के परामर्श पर क्रोध-शांति हेतु महेंद्र पर्वत पर जाकर तपस्या करने लगे | परशुराम जी ने अपनी समाधि तीन बार तोड़ी है पृथ्वी पर जब कोई अभूतपूर्व घटना घटती है तो उनकी समाधि भंग होती है त्रेतायुग में सीता-स्वयंवर के दौरान शिव-धनुष टूटने पर, हुई थी भगवान परशुराम शिवजी के बहुत बड़े भक्त है और अजर-अमर है|          

Comments

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