सर्पयोनी से कैसे मुक्ति मिली ब्राम्हण को


सर्पयोनी से कैसे मुक्ति मिली ब्राम्हण को

प्राचीन समय में एक बार बड़े तेजस्वी वत्स नामक मुनि भ्रमण करते हुए सूतजी के आश्रम में पहुँचे

सूतजी भक्तिभाव से मुनि को प्रणाम किये और निवेदन करके मुनि से बोले आप कुछ दिन मेरे यहाँ रहिये

चतुर्मास व्रत का अनुष्ठान करने के लिए वत्समुनि उनके यहाँ ठहर गये I सूतजी विनयपूर्वक उनकी सेवा करने लगे l मुनि वत्स रात में सोने के समय सूतजी को अनेक विचित्र कथाएं सुनाया करते थे l एक दिन सूतजी मुनि से पूछे आपका यह शरीर इतना सुकुमार है और आप अनेक विचित्र कथाएँ कहते है

मुझे यह बतलाइये की इतनी छोटी अवस्था में आपने ये घटनाएँ कैसे देखी ? हे मुनीश्वर यह आपकी तपस्या का प्रभाव है, अथवा किसी मंत्र का फल है?

वत्समुनि सूतजी से बोले मै प्रतिदिन शिवजी के समीप उनके षडक्षर मंत्र का आठ हजार जप किया करता हूँ l इसी के प्रभाव से मेरी युवावस्था तीनों काल में एक सी रहती है और मुझे सदेव भूत-भविष्य का ज्ञान बना रहता है l मेरा जन्म हुए एक हजार वर्ष हो गये है l

वत्समुनि सूतजी से बोले  शिवजी की कृपा से मैंने जिस प्रकार सिद्दी प्राप्त की ये कथा मै विस्तार से तुम्हें सुनाता हूँ l

एक बार वनों में भ्रमण करते-करते मै महर्षि देवरात ऋषि के आश्रम में पहुँचा ऋषि के मृगावती नाम की एक कन्या थी जो सर्वगुण सम्पन्न थी, ऋषि खुशी मन से अपनी पुत्री का विवाह शुभ महूर्त में मेरे साथ कर दिया l अपनी पत्नी के साथ मै बहुत खुस था हम दोनों साथ में सुखी जीवन व्यतीत करने लगा l परन्तु मेरे भाग्य में यह सूख अधिक दिन नहीं रहा

एक दिन मेरी पत्नी अपनी सहेलियों के साथ वन में विचरण करने गई l घूमते-घूमते उसका पैर घास से ढके एक भयंकर नाग के सिर पर पड़ गया, सर्प ने क्रोध में आकर मेरी पत्नी को काट लिया और वह मर गयी l

अपनी प्राणप्रिया को निर्जीव देखकर छाती पीट-पीट कर रोने लगा विलाप करते-करते दु:खी होकर मैंने चिता बनाई l मृगावती के शव को रखकर मैंने आग लगा दी और स्वयं भी उस चिता पर चढ़ने लगा, मेरे कुछ मित्र मुझे पकड़ कर अपने साथ आश्रम में ले आए और मुझे समझा बुझाकर मरने से रोक लिया आधी रात तक मै विलाप करता आश्रम में पड़ा रहा पर ज्यों ही मेरे मित्र सब सो गये पत्नी के वियोग में रोता हुआ आश्रम को छोड़ कर वन की ओर निकल पड़ा लेकिन मेरे दोस्त मुझे फिर पकड़ लाए पत्नी वियोग में मै कई बार आश्रम से निकले लेकिन हर बार मेरे मित्र मुझे ढूढ़कर पकड़ लाते और अंतिम बार मेरे मित्र मुझे फटकारते हुए बोले तुमको धिक्कार है, ऋषि होकर तुम स्त्री के लिए इस तरह रोते हो ?

हम तुम संसार के सभी प्राणी तो भूमि में उत्पन्न हुए है वे सब मरेगें l इनके लिए रोने से क्या लाभ दूसरों की कौन कहे अपने शरीर का भी अधिक दिन तक साथ नहीं रहता l

खोई हुई वस्तु, बीती हुई बात, अथवा मरे हुए प्राणी के लिए जो पुरुष सोच करता है, वह इस लोक और परलोक में दुःख का पात्र होता है l

मुनि सूतजी से बोले मै आश्रम में आ तो गया लेकिन मेरा दू:ख कोप रूप में परिणित हो गया मेरे अंदर बदले की भावना आने लगी मन ही मन में मैंने प्रतिज्ञा कर ली मेरे आखों के सामने अगर कोई सर्प आ गया उसे मै मार दूँगा

सर्प जाति का विनाश करना ही मैंने अपने जीवन का कर्तव्य बना लिया, और अनेकों सर्पो को मार डाला, इस प्रकार असंख्य सर्पो को मारता हुआ मै एक दिन एक सरोवर के समीप पहुँच गया l

वहाँ मुझे एक बूढ़ा, साँप दिखाई दिया उसको देखते ही मैंने डंडा उठा लिया उसे मारने के लिए

अपने सिर पर काल को सवार देखकर उस वृद्द सर्प ने नम्रतापूर्वक बोला  हे ब्राम्हण मै यहाँ एकांत में अपना जीवन व्यतीत करता हूँ न किसी को कष्ट और न क्षति पहुँचाता हूँ फिर मुझे निरअपराधी को आप क्यों मार रहें है

उसने मुझसे बहुत पार्थना की पर मैंने अपना डंडा उस पर चला दिया l

डंडा लगते ही सर्प का शरीर तो न जाने कहाँ चला गया, और मुझे अपने सामने सूर्य के समान तेजस्वी एक महापुरुष दिखाई पड़ा,

यह घटना देखकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ, और मै उस पुरुष को प्रणाम कर कहने लगा हे महापुरुष मैंने कोपवश बहुत अनुचित कार्य किया है, कृपा करके आप मुझे क्षमा कर दीजिए

आप कौन है और आपने सर्प का शरीर क्यों धारण किया था, किसी के शाप से ऐसा हुआ या यह आपकी एक लीला मात्र थी l

वृद्द सर्प बोला ‘हे ऋषि मै आपको अपने बारे में पूरी कहानी बताने जा रहा हूँ आप ध्यानपूर्वकसुनने की कृपा करे

इससे पूर्वजन्म में मै चमत्कारपुर में निवास करता था, ईश्वर की कृपा से मेरे पास सब कुछ था

उसी नगर में सिद्देश्वर महादेव का विशाल मन्दिर था, एक दिन बड़े उत्साह के साथ उस शिवालय में उत्सव मनाया गया, शिव भक्त दूर-दूर से वहाँ आ पहुँचे

सब भक्त भगवान सिद्देश्वर की वन्दना कर उनके सामने बैठ रहे थे और विविध प्रकार की कथाएँ कहते-सुनते थे l

अपने मित्रो के साथ जवानी के मद में चूर मै भी तमाशा देखने के लिए वहाँ जा पहुँचा मै अज्ञान से अँधा हो रहा था, मेरे हृदय में शिव की भक्ति तो थी  नहीं, मै केवल उस उत्सव में विध्न डालकर आनन्द लूटना चाह रहा था l

मैंने एक बड़े लम्बे भयंकर जल सर्प को उठाकर उन लोगों के बीच में फेक दिया l साँप को देखते ही सब लोग डर के मारे इधर-उधर भाग गये l

केवल एक सुप्रभ नामक महान तपस्वी परमात्मा के ध्यान में निमग्न,समाधि लगाये बैठे रहे, जरा-मरण से रहित वेद-नाथ शिवजी के ध्यान में लीन थे l

महामुनि को कहाँ क्या हो रहा है,इसका लेश मात्र भी ज्ञान नहीं रह गया था l

सर्प को और कोई तो मिला नहीं यही समाधिस्थ मुनि मिले सर्प ने मुनि के शरीर को जकड़ लिया इसी बीच परम तपस्वी श्रीवर्धन नामक उनके शिष्य वहाँ आ पहुँचे l पूज्य गुरुदेव के शरीर को सर्प से जकड़ा हुआ और मुझे उनके समीप ही खड़ा देखकर उन्हें बड़ा क्रोध आया वे अत्यंत कठोर स्वर में कहने लगे की,

‘‘यदि मैंने तीव्र तप किया हो, सच्चे हृदय से भगवान महेश्वर का ध्यान किया हो तो यह ब्राम्हण इसी समय सर्प योनी को प्राप्त हो जाय’’ उन महातपस्वी का

वचन झूठा कैसे हो सकता था? शाप देते ही मै तुरंत मनुष्य से सर्प बन गया l

कुछ देर बाद सुप्रभ मुनि का ध्यान टुटा, उन्होंने अपने शरीर में लिपटे हुए एक भयंकर सर्प को और पास ही में सर्प के आकार में मुझे तथा अपने आस-पास भयभीत समुदाय को देखा l तुरंत सब बातें उनकी समझ में आ गयी l मुनि अपने शिष्य से बोले, तुमने इस दिन ब्राम्हण को शाप देकर ठीक नहीं किया जो मान और अपमान को समान समझता है वही तपस्वी सिद्द पद पा सकता है तुमने बिना समझे-बुझे इस शाप को दे दिया, अब इसके सब अपराध क्षमा करके इसे शाप से मुक्त करदो l क्षमा से सब सिद्दियाँ प्राप्त होती है

हे गुरुवर अज्ञान से अथवा ज्ञान से मेरे मुख से जो निकल गया मेरा वचन मिथ्या नहीं हो सकता l आप मेरी गलती को क्षमा कर दीजिए

अपने शिष्य को अनेक उपदेश देने के बाद मुनि मुझसे बोले हे भाई तुम्हारी यह दशा देखकर मुझे बड़ा दुःख है l परन्तु अब कोई उपाय नही है मेरे शिष्य का शाप मिथ्या नहीं हो सकता l तुमको सर्पयोनी से मुक्त होने के लिए कुछ समय की प्रतीक्षा करनी पडेगीं

तब मैंने बड़ी नम्रता से पूछा हे मुनि मै बड़ा अज्ञानी और दिन हूँ मुझ पर कृपा कर बतलाइये की इस शाप से अंत कब होगा?

महर्षि सुप्रभ ने कहा जो व्यक्ति शिवालय में एक घड़ी भर नित्य,गीत आदि करता है उसके पुण्य का पारावार नहीं रहता और जो उत्सव में एक घड़ी भर भी विध्न करता है उसके पाप का ठिकाना नहीं रहता l तुमने इस महोत्सव में विध्न डालकर घोर पाप किया है, अब केवल बातों से काम नहीं चलेगा l

मै तुम्हें उपाय बताता हूँ उसके करने से ही इस पाप से छुटकारा मिल सकता है

वह उपाय है शिवषड अक्षर मंत्र का जप l शिवजी के ‘ॐ नम:शिवाय’ इस षडअक्षर मंत्र के जप करने से पाप से मुक्ति मिल जाती है षडाक्षर मंत्र का यदि दस बार जप किया जाय तो एक दिन के सब पाप दूर हो जाते है l बीस बार के जप करने से सालभर के पाप नष्ट हो जाते है इसलिए यदि तुम जल में बैठकर इसी मंत्र का जप करो तो धीरे-धीरे तुम्हारे सब पाप नष्ट हो जायेगें

एक दिन वत्स नामक ब्राम्हण उस सरोवर के पास आयेगे और वे डंडे से तुम्हें मारेगें उनके डंडे की चोट खाते ही तुम्हें इस योनी से मुक्ति मिल जायेगीं l

महर्षि के उपदेश से मै तभी से इस जलाशय में बैठा भगवान शिव का षड-अक्षर मंत्र का जप किया करता था l आज आपके प्रसाद से मुझे सर्प योनी से छुटकारा मिल गया, देखिये मुझे ले जाने के लिए दिव्य विमान आ रहा है, अब मै इस पर बैठ कर परम धाम चला जाउँगा l आपने मेरा बड़ा उपकार किया है,

आप बतलाइये की इस ऋण से मुक्त होने के लिए मै आपकी क्या सेवा करूँ?

वत्स ने कहा की यदि आप मेरा कुछ उपकार करना चाहते है तो मुझे कोई ऐसा उपाय बतलाइए जिससे मेरा दुःख दूर हो जाय और शत्रु,व्याधि,दरिद्रता आदि भी मुझे कभी दुःख न उठाना पड़े l

उस दिव्य पुरुष ने कहा ‘‘हे मुने शिवजी का षडाक्षर मंत्र प्राणियों के सब अशुभो को हरण करता है l आप उस मंत्र का दिन-रात जप कीजिये, इससे आपकी सभी मनोकामनाए पूरी होंगी यह मंत्र तभी सिद्द और फलदायक होगा जब आप पूर्णरूप से हिंसा का परित्याग कर देंगे l इस प्रकार अहिंसामय उपदेश देकर वह दिव्य पुरुष दिव्य विमान पर बैठकर स्वर्गलोक को चला गया उसके चले जाने पर मेरे मन में निष्कारण इतने सर्पो को मारने का बड़ा पछतावा हुआ, और मैंने हिंसा का परित्याग कर दिया

उसी समय मैंने शिव दीक्षा लेकर मौन धारण कर दिन-रात सारा समय एक वृक्ष के निचे बिताता हुआ भष्म रमाये षडअक्षर मंत्र का जप करता और विचरने लगा अंत में सिद्देश्वर महादेव के शरण में पहुँचा वहाँ मै उनकी आराधना और षडक्षर मंत्र का जप करने लगा l

इस तप के प्रभाव से मेरा यौवन सदा के लिए स्थायी हो गया, मुझे ऐसी सिद्दी प्राप्त हो गयी की जिससे मै एक स्थान पर बैठे हुए ही दुसरे लोक का वृतान्त जान सकता हूँ, उसी तप के प्रभाव से मुझमे आकाश मार्ग से आने जाने की शक्ति भी आ गयी                                                                                                            

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