शिव मन्दिर में नन्दी दर्शन सर्वप्रथम क्यों करते हैं नन्दी दर्शन से हमें क्या शिक्षा मिलती हैं


शिवालय की चर्चा की जाय तो प्रत्येक शिव मन्दिर में नन्दी के दर्शन सर्वप्रथम होते हैं। 
नन्दी महादेव जी का वाहन हैं। 
नन्दी सामान्य बैल नहीं हैं। नन्दी ब्रह्मचर्य के प्रतीक है।

शिवजी का वाहन जैसे नन्दी है। वैसे ही हमारे आत्मा का वाहन शरीर काया है।

शिवजी को आत्मा एवं नन्दी को शरीर का प्रतीक समझा जा सकता है। जैसे नन्दी की दृष्टि सदा शिवजी की ओर रहीं है, वैसे ही हमारा शरीर आत्माविमुख बने, शरीर का लक्ष्य आत्मा बने,यह संकेत समझना चाहिए 

शिव का अर्थ हैं कल्याण। 

सभी के कल्याण का भाव आत्मसात करें,

सभी के मंगल की कामना करे तो जीव शिवमय बन जाता है।

अपने आत्मा में ऐसे शिव तत्व को प्रगट करने की साधना को ही शिव पूजा या शिव दर्शन कह सकते है, और इसके लिए सर्वप्रथम 

आत्मा के वाहन शरीर को उपयुक्त बनाना होगा। शरीर नन्दी की तरह आत्माविमुख बने शिव भाव से ओत प्रोत बने। 

इसके लिए तप एवं ब्रह्मचर्य की साधना करे 

स्थिर एवं दृढ़ रहे यही महत्वपूर्ण शिक्षा नन्दी के माध्यम से दी गईं हैं।

हमारा मन कछुआ जैसा कवचधारी सुदृढ़ बनना चाहिए 

नन्दी के बाद शिव की ओर आगे बढ़ने से कछुआ आता हैं 

नन्दी यदि हमारे स्थूल शरीर के लिये प्रेरक मार्कदर्शक है, तो कछुआ सुक्ष्म शरीर का

हमारा मन कछुआ जैसा कवचधारी सुदृढ़ बनना चाहिए, जैसे कछुआ शिव की ओर गतिशील है, वैसे ही हमारा मन भी शिवमय बने, कल्याण का ही चिंतन करे, आत्मा के श्रेय हेतु गतिशील रहे 

मन की गति,विचारों का प्रवाह, इन्द्रियों के काम 

शिव-भाव युक्त आत्मा के लिये ही हुआ करे। 

यही शिक्षा देने के लिये कछुआ शिव की ओर सरकता बताया जाता हैं

नन्दी एवं कच्छप दोनों जब शिव की ओर बढ़ रहे हैं 

इन दोनों की शिव रूप आत्मा को पाने की योग्यता है या नहीं, इसकी कसौटी करने के लिए 

शिव मन्दिर के द्वार पर दो द्वारपाल खड़े है श्रीगणेश और हनुमान 

श्रीगणेश एवं हनुमान के दिव्य आदर्श यदि जीवन में नहीं आये तो शिव का या कल्याणमय आत्मा का साक्षात्कार 

भला कैसे हो सकता है।


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