शिवालय के मन्दिर का प्रवेशद्वार भूमि से कुछ ऊंचा ही रखा जाता है।

श्री गणेश का आदर्श क्या है।

श्री गणेश का आदर्श क्या हैं। बुद्धि एवं समृद्धि का सदुपयोग, यहीं इनका सिद्धांत है,इसलिए आवश्यक गुण श्रीगणेश के हाथ में स्थित प्रतीकों द्वारा बताए जाते हैं। 

अंकुश-संयम, आत्मनियंत्रण का,कमल- पवित्रता, नीरलेपता का पुस्तक-उच्च उदार विचारधारा का एवं 

मोदक मधुर स्वभाव का प्रतीक हैं। वे मूषक जैसे तुच्छ रंग को भी चाहते हैं, अपनाते है, ऐसे गुण रखने से ही आत्म - दर्शन शिवदर्शन की पात्रता होती हैं।

हनुमान का आदर्श क्या है

संकट मोचन हनुमान जी के आदर्श क्या है।

विश्व हित के लिए तत्परता युक्त सेवा और संयम।

ब्रम्हचर्यमय जीवन ही इनका मूल सिद्धांत है, यही कारण हैं कि हनुमान सदैव श्रीराम के कार्यों में सहयोगी रहते हैं, अर्जुन के रथ पर विराजित रहे हैं,

ऐसी तत्परता बरतने से ही विश्व - कल्याणमय शिवत्व या अपने आत्मदर्शन की पात्रता को प्राप्त कर सकता है। श्री गणेश हनुमान की परीक्षा में उत्तीर्ण होने से साधक को शिव-रूप आत्मा की प्राप्ति हो सकती है।

किंतु इतनी महान विजय जिसको प्राप्त होती है उसमें अहंकार आ सकता है, मैं बड़ा हूँ, श्रेष्ठ हूँ, ऐसा अहंकार ही तो पग पग पर आत्मा - परमात्मा के मिलन में बाधक बन जाता है।

शिवालय के मन्दिर का प्रवेशद्वार भूमि से कुछ ऊंचा ही रखा जाता है।

शिवालय के मन्दिर का प्रवेशद्वार सोपान भूमि से कुछ ऊंचा ही रखा जाता है, द्वार भी कुछ छोटा ही रहता है। मन्दिर के ऊंचे सोपान पर चरण रखते समय एवं अंतिम शिव द्वार में प्रवेश करते हुए अत्यन्त विनम्रता, सावधानी बरतनी पड़ती है

सिर भी झुकाना पड़ता है। साधक के अहंकार का तिमिर जब नष्ट हो जाता है, तब भीतर बाहर शिव तत्व के दर्शन होने लगते है, सभी कुछ मंगलमय लगने लगता है।

भीतर में जब प्रवेश किया जाय तब कर्ममय स्थूल जगत एवं विचारमय सुक्ष्म जगत तो बाहर ही छूट जाता है।

शिवालय के मन्दिर में जो शिवलिंग है उसे आत्मलिंग

ब्रह्मलिंग कहते है। यहां विश्व कल्याण निमग्न ब्रह्माकार 

विश्वाकार परम आत्मा ही स्थित है हिमालय सा शांत महान श्मशान सा सुनसान शिवरूप आत्मा ही भयंकर 

शत्रुओं के बीच रह सकता है, कालरूप को गले लगा सकता है, मृत्यु को भी मित्र बना सकता है।

भगवान शिव द्वारा धारण, कपाल,कमंडल, आदि पदार्थ 

संतोषी, तपस्वी, अपरिग्रही जीवन साधना के प्रतीक है।

त्रिदल बिल्व पत्र, तीन नेत्र,त्रिपुंड,त्रिशूल आदि सत रज तम इन तीन गुणों को सम करने का संकेत देते है। 





Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

महर्षि दुर्वासा के ललाट से भष्म के गिरने से कुंभीपाक नरक स्वर्ग कैसे हो गया

भगवान शंकर की माया neelam.info

होलिका अपने भतीजे को गोदी में लेकर अग्नि में क्यों बैठी