छिन्नमस्ता देवी ने किसकी भूख मिटाने के लिए अपना सिर काट दिया
छिन्नमस्ता देवी को कटे सिरवाली देवी क्यों कहा जाता हैं
भवानी छिन्नमस्ता दस विद्याओं में एक हैं।
छिन्नमस्ता का शाब्दिक अर्थ हैं- कटे सिरवाली।
ये साहस, बुद्धि और विवेक प्रदान करने वाली देवी है।
देवी छिन्नमस्ता को प्राय: वस्त्रहीन रति एवं काम के ऊपर खड़ा चित्रित किया जाता हैं।
वे इंगित करती हैं कि काम पर विजय पाना जीवन का उद्देश्य बनाएं।
जो व्यक्ति इनकी श्रद्धापूर्वक भक्ति करता है वह काम विजयी, धन्य-धान्य से सम्पन्न
और अनेक विद्याओं का जानकार हो जाता हैं यह भी कहा जाता कि इनके नियम में चूक होने पर ये भक्त को कड़ा दंड देती हैं।
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार एक बार भवानी या पार्वती अपनी दो सखियों जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गई।
स्नान के बाद तीनों को बड़ी जोर को भूख लगी। भूख के कारण भवानी मां का रंग काला पड़ गया।
जया और विजया को भी भूख बर्दाश्त नहीं हुई।
जया और विजया मां भवानी से भोजन की माँग की।
भवानी ने प्रतीक्षा करने के लिए कहा।
कुछ देर के बाद जया और विजया फिर भोजन की माँग की।
देवी ने पुनः प्रतिक्षा करने को कहा लेकिन जया और विजया को भूख नहीं बर्दाश्त हुई और उन्होंने प्रार्थना की, हे भवानी मां! आप तो सारे जगत की मां हैं।
हम बच्चों की भूख शांत करे। आप हमारी
जन्मदात्री हैं।
भवानी उनकी प्रार्थना से अत्यंत प्रसन्न हुई
और खड्ग से तुरंत अपना सिर काट दिया। शिरोच्छेदन के बाद भी वे जीवित रही।
उनके धड़ से रक्त की तीन धाराएं फूटी।
एक धारा जया के मुंह में गई
दूसरी विजया के मुंह में
तीसरी स्वयं भवानी के मुंह में।
इस प्रकार उन्होंने सबकी क्षुधा शांत की।
तभी से भवानी के इस रूप को छिन्नमस्ता के रूप में पूजा की जाने लगी।
रक्त की धारा से यह आशय है कि देवी छिन्नमस्ता सभी प्राणियों की क्षुधा शांत करती है।
शिरोच्छेदन से संकेत करती हैं कि
मनुष्य को अहंकार से सदैव दूर रहना चाहिए
🌹🌹🌹🙏
ReplyDeleteVery Nice post
ReplyDeleteअत्यंत ज्ञानप्रद
ReplyDelete"छिन्नमस्ता देवी का रूप न केवल अद्भुत है, बल्कि आत्म-बलिदान, शक्ति और चेतना का गूढ़ प्रतीक भी है। माँ का यह तांत्रिक स्वरूप दर्शाता है कि सच्ची शक्ति भीतर से आती है और जागृति के लिए अहं का संहार आवश्यक है। इस पोस्ट ने देवी के रहस्य और गहराई को बहुत सुंदरता से प्रस्तुत किया है। हार्दिक धन्यवाद ऐसे दुर्लभ ज्ञान को साझा करने के लिए। जय माँ छिन्नमस्ता!"
ReplyDelete"शक्ति, साहस और चेतना का प्रतीक — माँ छिन्नमस्ता का यह रूप मन को छू गया।"
ReplyDelete"छिन्नमस्ता नमस्तुभ्यं, रक्तवर्णे भयाहिने।
ReplyDeleteयोगिनीं शक्तिरूपां तां, वन्दे त्वाम् अध्भुतां सदा॥"
"पौराणिक संदर्भों के साथ देवी छिन्नमस्ता का ऐसा विश्लेषण बहुत दुर्लभ है। लेख को नमन!"
ReplyDeleteछिन्नमस्ता माँ का यह रूप सनातन धर्म की गहराई और विविधता को दर्शाता है। जय माँ!"
ReplyDeleteNice post
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