राहु अपनी छाया से सूर्य और चन्द्र को क्यों ढक लिया

भगवान विष्णु ने जब अपने सुदर्शन चक्र से राहु का मस्तक काटा, तब राहु का मस्तक तो वहीं रह गया, लेकिन उसका धड़ गौतमी नदी के तट पर जाकर गिरा।
अमृतपान के कारण राहु और केतु दोनों ही अमर हो गए।
सभी देवता यह जान के भयभीत हो गए की राहु केतु अमर हो गए
इंद्र और आदि देवता घबराएं हुऐ भगवान शंकर के शरण में गए
सभी देवता शिवजी से बोले हे महादेव दैत्य राहु ने आसुरी माया से देवता का रूप धारण करके अमृतपान कर लिया है।
भगवान विष्णु भी उसे समाप्त करने में असफल रहे।
हे प्रभु यदि अब उस दैत्य के हृदय में तीनों लोकों पर विजय करने का विचार उत्पन्न हो गया तो उसे कोई भी नहीं रोक सकेगा
हे प्रभु आप इसका कुछ उपाय करे और आने वाले संकट से हमारी रक्षा करे। हम सब आपकी शरण में हैं।
भगवान शिव देवताओं से बोले सृष्टि के कल्याण के लिए उस दैत्य का विनाश आवश्यक है मैं शीघ्र ही उस दैत्य के संहार का कोई उपाय करता हूं।
भगवान शिव ने अपने आंख बंद करके अपनी श्रेष्ठ शक्तियों का आवाहन किया।
आवाहन करते ही शिवजी के तीसरे नेत्र से एक प्रकाश किरण निकलकर विभिन्न मानव आकार लेने लगी।
भगवान शिव चंडिका से बोले "हे देवी मै अपनी समस्त शक्तियां तुम्हारे नेतृत्व में राहु के विनाश के लिए प्रस्तुत करता हूं।
भगवान शिव ने अपनी शक्तियों के मानवाकार रुप को चंडिका के नेतृत्व में राहु का संहार करने के लिए भेज दिया
राहु के कटे सर को चंडिका ने अपने अधिकार में ले लिया और उसके धड़ को ढूंढने चल पड़ी
राहु का धड़ भी अमृतपान करने के कारण जीवित था। उसने चंडिका को देखा तो युद्ध के लिए ललकारा।
केतु की ललकार सुन कर चंडिका आश्चर्यचकित हुई। राहु का सर उनके पास था,तब भी उसका धड़ उन्हें युद्ध के लिए ललकारा रहा था।
चंडिका ने राहु का मस्तक देवताओं को सौंपा और स्वयं केतु के साथ युद्ध करने लगी
चंडिका ने केतु पर अनेक शक्तियों का प्रहार किया। उसे विभिन्न प्रकार के माया के जाल में फ़साकर समाप्त करने का प्रयास किया लेकिन वह केतु का अहित न कर सकी और युद्ध अनेक दिनों तक चलता रहा
सभी देवता ब्रह्माजी के शरण में गए और विनती करके बोले "हे परमपिता दैत्य राहु और देवी चंडिका के मध्य भयंकर युद्ध हो रहा है।
लेकिन अभी तक कोई परिणाम नजर नही आ रहा है। अमृतपान करने से राहु अमर हो गया है और उसे दिव्य शक्तियां प्राप्त हो गई हैं।
ब्रह्माजी ने देवताओं को परामर्श दिया युद्ध स्थल पर जाकर राहु की स्तुति करने का
ब्रह्माजी के कहने पर सभी देवता युद्ध स्थल पर पहुंच कर राहु की स्तुति करने लगे

स्तुति से प्रसन्न होकर राहु ने युद्ध बंद कर दिया तभी वहां ब्रह्माजी प्रगट हुए और राहु से बोले,हे पुत्र अमृतपान करने से तुम्हें समाप्त करना किसी भी प्राणी व शक्ति के लिए असंभव है
तुम्हारे शरीर का नाश होने के बाद भी तुम जीवित रहोगें
हे पुत्र इस दैत्य शरीर का त्याग करके अब तुम देवगण में अपना स्थान ग्रहण करो
ब्रह्माजी की बात सुनकर राहु का विवेक जाग्रत हो गया और उसने अपने शरीर के नाश का रहस्य देवी चंडिका को बता दिया।
देवी चंडिका ने राहु के धड़ को फाड़ दिया और उसमें से अमृत रस निकाल कर उसका पान कर लिया। इस प्रकार राहु के शरीर का नाश हो गया।
सभी देवता राहु से प्रसन्न होकर उसके सिर और धड़ को छाया ग्रह के रूप में स्थापित होने का आशीर्वाद प्रदान किया
तभी से राहु का सिर राहु के नाम से और धड़ केतु के नाम से छाया ग्रह के रूप में आकाश में स्थापित है

अमृत पीते समय सूर्यदेव और चंद्रदेव ने देखा था और उन्होंने श्री विष्णु को बताया था
अमृतपान के समय सूर्यदेव और चंद्रदेव के देखने के कारण राहु को अपने शरीर का त्याग करना पड़ा। तभी से राहु सूर्यदेव और चंद्रदेव का विरोधी हो गया।
जब राहु छाया ग्रह के रूप में स्थापित हुआ तो उसने प्रतिशोध के वशीभूत होकर सूर्य और चंद्रमा को अपनी छाया से ढक लिया
सूर्य और चंद्रमा के अदृश्य होने से सृष्टि में हाहाकार मच गया।

तब ब्रह्माजी राहु के पास गए और उससे बोले "हे पुत्र तुम अपने प्रतिशोध की अग्नि में संपूर्ण सृष्टि को मत जलाओ।
सूर्य चंद्र के अभाव में सृष्टि अपूर्ण है। हे पुत्र तुम सूर्य और चंद्रमा को केवल एक एक दिन के लिए अपनी छाया में रखकर मुक्त कर दो। राहु ने ब्रह्माजी की बात स्वीकार करते हुए सूर्य और चंद्रमा को अपनी छाया से मुक्त कर दिया और केवल पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को और अमावस्या के दिन सूर्य को अपनी छाया से ग्रसित करते हैं। केतु ग्रह मनुष्य के जीवन क्षेत्र को गहराई तक प्रभावित करता है।
राहु की अपेक्षा केतु अधिक सौम्य, हितकारी और शुभता प्रदान करने वाला ग्रह हैं।
प्रसन्न होने पर यह अपने भक्तों को यश, उन्नति व ऐश्वर के उच्च शिखर पर पहुंचा देता हैं और रूष्ट होने पर उन्हें रोगी व निर्धन बना देता है।
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